वह बरसात की रात थी
पर कुछ खास बात थी
यह सर्दियों की शुरुआत थी
मेरा भी मन मचला
राजा सा उठ खडा हुआ
और प्रजा देखने निकल पडा
इस प्रजातन्त्र भारत की
निकला ही था कि एक नौजवान उदास था
कुछ चिन्तित और हताश था
चौंक उठा जब पूछ कारण
मैं हो गया उसके पास खडा
आँखों से आँसू निकल आए
मुझसे लिपट वह रो पडा
और गलती का एहसास कर
दूर हुआ एक कदम॥
उसने बताना चाहा:
पर गली के नुक्कड वाले मन्दिर से
सत्संग की आवाज आ रही थी
जैसे उसके रुँधे हुए गले की आवाज को
दबाना चाह रही थी
मैं फिर से उसके पास हुआ
और मैंने महसूस किया कि
उसे अपनेपन का एहसास हुआ
आँसू पोंछते हुए बोला
बाबूजी, शराबी के घर पैदा हआ
तभी तो यह हाल है
और सर्दियाँ शुरु हो आई है.
शायद मेरा आखिरी साल है
मैंने समझाने का व्यर्थ प्रयास किया
भई- सर्दियों में न बिजली का झमेला है
और मच्छरों का भी लफडा नही है
वह फिर सुबका
और "और" नम्रता से बोला
बाबूजी, सर्दियों का एक भी कपडा नहीं है
मैं जड हो गया
चेताया दोबारा मन्दिर से आती तेज आवाज ने
उसमें किसी सेठ का नाम लिया था
जिसने मन्दिर के नाम १ लाख दान दिया था
मैं असमंजस में था
और साथ में लाचार
उस गरीब और गरीबी पर
मैंने करते हुए विचार
अपनी जेब में हाथ डाला
एक सौ का फटा हुआ नोट निकाला
बेजान मूर्तियों को दान देने वाले का नाम
मेरे कानों में गूँज रहा था
जैसे गरीबी से छुटकारा पाने का रास्ता
मुझसे ही पूछ रहा था
रुदन करता ह्रदय, बोझिल मऩ
मैंने घर का रस्ता नाप लिया था
इतना व्यथित हो गया था मैं
जैसे मैंने ही कोई पाप किया था
पर बरसात की उस रात में
यह इत्तफाक इतना ख़ास हुआ था
गरीबी में लोग ऋतुओं से भी डरते हैं
उस रात मुझे एहसास हुआ था
7 comments:
प्रिय भ्राता,
तुम्हारी इस कविता ने मेरा मन मोह लिया है। तुम ऐसी ही और अच्छी-अच्छी कविताओं का निर्माण करो ऐसी शुभकामना और आशीर्वाद।
तुम्हारा सुमित प्रताप सिंह।
wah-wah kya ahsas hai.
ati sundar rachna hai..
ye kavitayen to bahut achchhi hain.kuchh aur kavitayen likho bhai.
Thank you all of you for the comments.. This will definitely boast the confidence in me..
kavita achchhi hai par do char aur kavitayen to maja aaye..
पर बरसात की उस रात में
यह इत्तफाक इतना ख़ास हुआ था
गरीबी में लोग ऋतुओं से भी डरते हैं
उस रात मुझे एहसास हुआ था
"wah, tremendeous, so emotional, touching poetry, liked reading it ya"
Regards
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