Wednesday 6 August 2008

एहसास

वह बरसात की रात थी

पर कुछ खास बात थी

यह सर्दियों की शुरुआत थी

मेरा भी मन मचला

राजा सा उठ खडा हुआ

और प्रजा देखने निकल पडा

इस प्रजातन्त्र भारत की

निकला ही था कि एक नौजवान उदास था

कुछ चिन्तित और हताश था

चौंक उठा जब पूछ कारण

मैं हो गया उसके पास खडा

आँखों से आँसू निकल आए

मुझसे लिपट वह रो पडा

और गलती का एहसास कर

दूर हुआ एक कदम॥

उसने बताना चाहा:

पर गली के नुक्कड वाले मन्दिर से

सत्संग की आवाज आ रही थी

जैसे उसके रुँधे हुए गले की आवाज को

दबाना चाह रही थी

मैं फिर से उसके पास हुआ

और मैंने महसूस किया कि

उसे अपनेपन का एहसास हुआ

आँसू पोंछते हुए बोला

बाबूजी, शराबी के घर पैदा हआ

तभी तो यह हाल है

और सर्दियाँ शुरु हो आई है.

शायद मेरा आखिरी साल है

मैंने समझाने का व्यर्थ प्रयास किया

भई- सर्दियों में न बिजली का झमेला है

और मच्छरों का भी लफडा नही है

वह फिर सुबका

और "और" नम्रता से बोला

बाबूजी, सर्दियों का एक भी कपडा नहीं है

मैं जड हो गया

चेताया दोबारा मन्दिर से आती तेज आवाज ने

उसमें किसी सेठ का नाम लिया था

जिसने मन्दिर के नाम १ लाख दान दिया था

मैं असमंजस में था

और साथ में लाचार

उस गरीब और गरीबी पर

मैंने करते हुए विचार

अपनी जेब में हाथ डाला

एक सौ का फटा हुआ नोट निकाला

बेजान मूर्तियों को दान देने वाले का नाम

मेरे कानों में गूँज रहा था

जैसे गरीबी से छुटकारा पाने का रास्ता

मुझसे ही पूछ रहा था

रुदन करता ह्रदय, बोझिल मऩ

मैंने घर का रस्ता नाप लिया था

इतना व्यथित हो गया था मैं

जैसे मैंने ही कोई पाप किया था

पर बरसात की उस रात में

यह इत्तफाक इतना ख़ास हुआ था

गरीबी में लोग ऋतुओं से भी डरते हैं

उस रात मुझे एहसास हुआ था

7 comments:

Sumit Pratap Singh said...

प्रिय भ्राता,

तुम्हारी इस कविता ने मेरा मन मोह लिया है। तुम ऐसी ही और अच्छी-अच्छी कविताओं का निर्माण करो ऐसी शुभकामना और आशीर्वाद।

तुम्हारा सुमित प्रताप सिंह।

अरुण said...

wah-wah kya ahsas hai.

MOHAN KUMAR said...

ati sundar rachna hai..

विजय शर्मा said...

ye kavitayen to bahut achchhi hain.kuchh aur kavitayen likho bhai.

Naveen Bhagat said...

Thank you all of you for the comments.. This will definitely boast the confidence in me..

Jaidev Jonwal said...

kavita achchhi hai par do char aur kavitayen to maja aaye..

seema gupta said...

पर बरसात की उस रात में

यह इत्तफाक इतना ख़ास हुआ था

गरीबी में लोग ऋतुओं से भी डरते हैं

उस रात मुझे एहसास हुआ था

"wah, tremendeous, so emotional, touching poetry, liked reading it ya"

Regards