जब फँस जाए तेरी नौका
अथक तेरे प्रयास बाद भी,
फिसल जाए हाथों से मौका
थामें साहस की पतवार,
करनी पार यह झील है
क्या नहीं मिल पाया उसे
जो रहा प्रयत्नशील है
रौंद समय दे तेरी खुशियां,
जब तेरे विश्वास को
बहा सुनामी ले जाएं सब,
तेरे हर प्रयास को
साहस का इतिहास है साक्षी,
हुआ हर चक्रव्युह खील है
क्या नहीं मिल पाया उसे
जो रहा प्रयत्नशील है
विपदाओं में, बाधाओं में,
दुख में भी अट्टाहस कर
दूर नहीं है मन्जिल बन्धु,
एक बार तो साहस कर
जैसे इस खुले गगन में,
आखेटक विचरती चील है
क्या नहीं मिल पाया उसे
जो रहा प्रयत्नशील है
तू अपने दुष्कृत्यों का,
फिर मन से अनुताप कर
सबल - सक्षम कदमों से बढा चल,
लक्ष्य का ही जाप कर
ऊँचे पर्वत लाँघ कर,
उद्यानों की सैर कर
अग्नि में खुद को जला-तपा कर,
गहरे जलधि तैर कर
बढता चल तू अग्नि पथ पर,
मन्जिल कुछ ही मील है
क्या नहीं मिल पाया उसे
जो रहा प्रयत्नशील है
8 comments:
priy anuj,
aapki is rachna ko pad kar anand aaya tatha apna dusra kavita sangrah prakaashit karne ka kuchh saahas bhi...
AASHEERVAAD VA BADHAAI
badhiya rachna hai.
wah bhai apki kavita ne to shamaa baandh diya..
पन्द्रह अगस्त की छोटे भाई को हार्दिक शुभकामनायें..
Din know you write poems..Great piece..actually reading a poem after a long time..We got lotsa talent here :) next piece plz
badhiya kavita hai babua..
Blog par tumhaari pichhlee photograph badiya thee...
जन्माष्टमी की शुभकामनाएं
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